श्री मांडू ऋषि मंदिर का धार्मिक महत्व
मंदिर का इतिहास
मांडू ऋषि की तपोस्थली पर स्थित वर्तमान मंदिर का निर्माण 100 वर्ष पूर्व हुआ था। मंदिर परिषर मे ही 100 वर्ष से भी प्राचीन वट वृक्ष है। जिसकी बड़ी-बड़ी शाखाओ का विस्तार उसकी प्राचीनता का द्योतक हैं। यहाँ पर मांडू ऋषि का मंदिर तो प्राचीन काल से स्थित था। परंतु भूगर्भीय गतिविधियों और गंगा के धारा परिवर्तन के कारण समय-समय पर मंदिर का जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण का कार्य चलता रहा। इस क्रम में गंगा के घाट पर ही मंदिर का स्थान परिवर्तन भी हुआ है।
वर्तमान मंदिर में स्थापित मांडू ऋषि जी प्रतिमा बहुत प्राचीन है और ये प्रतिमा गंगा की धारा के परिवर्तन के कारण गंगा के मध्य में ही आ गयी थी। तब लगभग 100 वर्ष पूर्व स्थानीय निवासियों ने गंगा घाट पर नवीन मंदिर की स्थापना करके वहाँ मांडू बाबा की प्रतिमा को स्थापित कर दिया था। तब से ही ये मंदिर जनसमुदाय की श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। इस स्थल पर साधु-संतो का आवागमन होता रहता है। गंगा के तट पर प्रकृति की गोद में संत और सन्यासी अपनी साधना व तपस्या में लीन देखे जा सकते हैं।
मंदिर के प्रति जन-आस्था व मान्यताएँ
साधू व सन्यासियों के लिए ये स्थली एक पुण्य तपोभूमि है। आम जनमानस में भी इस स्थान के प्रति अगाध श्रद्धा है। ये स्थल मांडू आश्रम के रूप में विख्यात है। आमजन के मन में मांडू बाबा के प्रति अगाध श्रद्धा का भाव है और वो उन्हे अपने गुरु ही नहीं अपितु इष्ट के रूप में मान्यता देते हैं।
आम-जनमानस में मान्यता है कि मांडू बाबा उन्हे किसी भी अपयश से बचाकर उनकी यश और किर्ति में वृद्धि करतें हैं। लोग झूठे मुकदमों से मुक्ति हेतु मंदिर में प्रसाद चढ़ाने आतें हैं। और उनकी मान्यता है कि मांडू बाबा के दर्शन करने और सच्ची श्रद्धा से प्रार्थना करने से मांडू बाबा उन्हे मुकदमे से मुक्ति दिलातें हैं।